साहब डालो ना अब ना रह पाऊंगी

   05/04/2019

Sahab dalo na ab nahi rah paungi:

Antarvasna, hindi sex stories मैं हर रोज की तरह सुबह पार्क में जाया करता था सुबह के 6:00 बज रहे थे सुबह का मौसम ऐसा था जैसा कि वह हमें तरोताजा कर दे। मैं पैदल ही टहल रहा था तभी मैंने सामने से एक छोटी बच्ची को देखा उसकी उम्र 12 वर्ष के आसपास की रही होगी वह सब लोगों के चेहरे पर देख रही थी। मुझे समझ नहीं आया कि वह ऐसे क्यों देख रही है उसके कपड़े भी काफी गंदे थे मुझे उस पर दया आ गई मैंने उसे कहा बेटा तुम्हारा क्या नाम है पहले तो वह कुछ बोली नहीं। मैंने उससे पूछा तुम कहां रहती हो तो भी उसने मुझे कुछ जवाब नहीं दिया मैंने उसे कहा बेटा तुम कुछ खाओगे तो वह कहने लगी हां कल आप मुझे वडापाव खिला दीजिए।

मैंने उसे वडापाव खिलाया और वड़ा पाव खाते ही वह बड़ी तेजी से वहां से दौड़ी और उसके बाद ना जाने मेरी आंखों के सामने से वह कहां ओझल हो गई मैंने वडापाव वाले को पैसे दिए और कहा भैया क्या तुमने इस बच्ची को कभी यहां देखा है। वह कहने लगे हां यह लोग यही पीछे बस्ती में रहते हैं और यहां पर अक्सर आते रहते हैं मैंने उससे कहा ठीक है भैया अभी मैं चलता हूं और मैं वहां से चला आया। जब भी मैं सुबह जाता तो मुझे वह बच्ची हमेशा दिखाई देती मैं उसे हर रोज वडापाव खिला दिया करता उस बच्ची का नाम अंशिका है और वह बहुत ही दुबली पतली सी है। मुझे उसे देख कर लगता कि अंशिका भी पढ़ने में अच्छा कर सकती है मैंने उससे पूछा क्या तुम स्कूल में पढ़ने भी जाती हो वह कहने लगी हां मैं सरकारी स्कूल में पढ़ने जाती हूं। अब वह मुझसे बात करने लगी थी मैंने उसे पूछा की तुम्हारे घर पर कौन-कौन है वह मुझे कहने लगी मेरे घर पर मेरी मां है जो कि लोगों के घर का काम करती है और मेरे पापा हैं वह भी मजदूरी का काम करते हैं। अंशिका को मैं जब भी देखता तो उसे देख कर मुझे बहुत अच्छा लगता मैं सुबह के वक्त हर रोज पार्क में जॉगिंग करने जाता था और हर सुबह मुझे अंशिका दिखाई देती। एक दिन मैं शाम के वक्त भी ऑफिस से जल्दी चला आया अपनी बिजी लाइफ के चलते मुझे समय ही नहीं मिल पाता था तो सोचा आज जल्दी घर चला जाता हूं मैंने अपनी पत्नी से पूछा क्या तुम मेरे साथ पार्क में चलोगी। वह कहने लगी नहीं तुम हो आओ मैं अकेला ही पार्क में चला गया मैं जब पार्क में जा रहा था तो मैंने अंशिका को वहां पर देखा मैंने अंशिका से कहा तुम यहां क्या कर रही हो।

वह उन बच्चों की तरफ देख रही थी जो वहां पर खेल रहे थे और शायद उसके मन में भी उनके साथ खेलने की लालसा पैदा हो गई लेकिन उसे वह बच्चे अपने साथ खेलने नहीं दे रहे थे। यह शायद उनके माता-पिता की ही गलती थी जो उन लोगों ने उन्हें ऐसे संस्कार दिए थे वह लोग उसके कपड़े देखकर उसे कहते कि तुम यहां से चली जाओ वह उसे वहां से भगा देते। मैंने अंशिका से कहा कोई बात नहीं मैं कल तुम्हें एक फुटबॉल ला कर दे दूंगा। अगले दिन मैंने अंशिका को फुटबॉल लेकर दे दिया और वह अब शाम के वक्त अकेली ही पार्क में खेलने के लिए आया करती थी मैं जब भी जाता तो मैं उसे वहां देखा करता था। एक दिन मुझे उसकी मां भी दिखाई दी उसकी मां की उम्र ज्यादा नहीं थी उसकी उम्र बहुत कम थी शायद उसकी शादी बहुत जल्दी हो चुकी थी। मैंने अंशिका को देखा तो मै उससे बात करने लगा और वह भी मुझसे बात कर रही थी अंशिका ने मुझे कहा यह मेरी मां है मैंने अंशिका को कहा बेटा तुम खेलो मैं तुम्हारी मम्मी से बात करता हूं। मैंने उसकी मां से बात की और उसे कहा अंशिका बहुत ही अच्छी बच्ची है तुम उसे किसी अच्छे स्कूल में क्यों नहीं पढ़ाते। वह मुझे कहने लगी साहब हमारे पास इतने पैसे कहां होते हैं कि उसे हम अच्छे स्कूल में पढ़ाएं हमारी स्थिति ऐसी है कि सिर्फ दो वक्त की रोटी ही यदि हम लोग जुटाले तो इतना ही काफी है। मैंने उससे कहा देखो तुम अपने बच्चे पर पूरा ध्यान दो और वह यदि अच्छे से पड़ेगी तो तुम्हें भी उसका लाभ मिलेगा वह मुझे कहने लगी साहब मैं तो ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूं मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता।

मैंने उसकी मां से कहा तुम कोशिश करो अंशिका को तुम किसी अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवा दो वह मुझसे कहने लगी साहब मैं कोशिश करूंगी कि अंशिका को किसी अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवा सकूँ। मैं वहां से अपने घर चला आया लेकिन मैं रास्ते भर यही सोचता रहा कि यदि उसकी मां अंशिका को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ाएगी तो उसका भविष्य सुधर जाएगा और वह जरूर भविष्य में कुछ ना कुछ अच्छा करेगी। मैं जब घर आया तो मैंने अपनी पत्नी राधिका से अंशिका के बारे में कहा राधिका कहने लगी तुम ही उसे किसी अच्छे स्कूल में दाखिला क्यों नहीं दिलवा देते। मैंने अपनी पत्नी से कहा हां तुमने बिल्कुल सही कहा वैसे भी मैं इतना तो कर ही सकता हूं। राधिका भी दिल की बहुत अच्छी है उसने मुझे जब यह बात कही तो मैं इस बात के लिए मान गया और मैंने अंशिका के माता-पिता से बात की। मैंने उन्हें कहा कि अंशिका की पढ़ाई में जो भी खर्चा आएगा वह सब मैं दूंगा वह लोग तो जैसे मेरा ऐसा कभी भूलना नहीं चाहते थे। अंशिका को मैंने एक अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवा दिया उसी बीच एक दिन राधिका का पैर सीढियों से फिसल गया और उसे काफी चोट आई राधिका को इतनी ज्यादा चोट आई की डॉक्टर ने उसे आराम करने के लिए कह दिया था। राधिका भी अब अपने जॉब पर नहीं जा सकती थी इसलिए वह घर पर ही रहती थी। मैं किसी काम वाली की तलाश में था लेकिन मुझे कोई नहीं मिली एक दिन अंशिका मुझे पार्क में मिली और उसकी मां बबीता भी उसके साथ थी मैंने उससे कहा की क्या तुम्हारी नजर में कोई ऐसा है जो हमारे घर पर काम कर ले।

उसने मुझसे कहा आपके हम पर इतने एहसान है तो क्या मैं आपके घर पर काम नहीं कर सकती मैंने बबीता से कहा नहीं बबीता तुम रहने दो लेकिन वह मानी नहीं और वह हमारे घर पर काम करने के लिए तैयार हो गई। राधिका का भी वह बहुत ख्याल रखती थी मैं इस बात से खुश था की राधिका कि अब मुझे चिंता करने की कोई जरूरत नही है क्योंकि बबीता उसका पूरा ध्यान रखा करती थी। राधिका भी अब ठीक होने लगी थी जब राधिका पूरी तरीके से ठीक हो गई तो उसके बाद वह अपने जॉब पर भी जाने लगी और राधिका मुझसे कहती अब तुम बबीता को कह देना कि वह अब काम पर ना आये मुझे अच्छा नहीं लगता। मैंने राधिका से कहा ठीक है मैं बबीता से बात करूंगा, मैने बबीता से बात की और कहा बबिता देखो हमें अब लगता है कि राधिका घर का काम संभाल लेगी इसलिए तुम रहने दो। बबीता कहने लगी साहब कोई बात नहीं आपके मुझ पर इतने एहसान है मैं चाहती हूं कि मैं आप लोगों के घर पर काम करूं और आप लोगों की सेवा करुं। मैंने बबिता से कहा इसमें एहसान की कोई बात नहीं है अंशिका का भविष्य यदि सुधर जाएगा तो मुझे भी अच्छा लगेगा लेकिन बबिता अभी भी हमारे घर पर आती थी और वह घर का सारा काम कर दिया करती थी। हर रोज की तरह बबीता सुबह काम पर आ जाया करती थी लेकिन उसे देखकर अब मेरी नियत खराब होने लगी थी क्योंकि उसका बदन दिन बाद निखरता जा रहा था। बबीता को जब भी देखता तो ऐसा लगता जैसे  उसे अभी चोद डालूं, एक दिन मैंने बबीता को ऊपर से लेकर नीचे तक निहाराना शुरू किया तो वह मुझे कहने लगी साहब आप ऐसे क्या देख रहे हैं मैंने उसे कहा कुछ नहीं बस ऐसे ही तुम्हें देख रहा था लेकिन उसे क्या मालूम था मैं तो उसके ऊभरे हुए स्तन और उसकी बड़ी गांड को देख रहा था।

मुझे बहुत मजा आ रहा था जब मैं उसकी गांड को देखा करता और जिस प्रकार से मैं उसे देखता उससे वह भी समझने लगी थी कि मेरे दिल में क्या इरादे चल रहे हैं लेकिन मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि वह हम मेरे बारे में क्या सोचती है। एक दिन मैं अपने कमरे में ही बैठा हुआ था बबीता कमरे की सफाई कर रही थी वह पोछा मार रही थी मैं अपने चश्मे से तिरछी नजर मार कर उसको देखता। वह मेरी तरफ देखने लगी मैंने उसे अपने पास बुलाया और कहा बबीता तुम कितना कमा लेती हो तो वह कहने लगी साहब मैं ज्यादा तो नहीं कमा पाती हूं यह बात तो आपको मालूम ही है। मैंने उसकी जांघ पर हाथ रखा तो वह समझ गई कि मैं उससे क्या चाहता हूं मैंने उसे कहा मैं तुम्हें आज पैसे दूंगा लेकिन यह बात सिर्फ हम दोनों के बीच तक ही रहेगी। वह मेरी बात मान गई और मेरे साथ सेक्स करने के लिए राजी हो गई मैंने अपने लंड को बाहर निकाला। जब उसने मेरे लंड को अपने हाथ मे लिया तो मेरे अंदर से अलग ही प्रकार का जोश पैदा होता। मैंने उसके बालों को पकड़ा और अपने लंड पर सटाना शुरू किया उसने मेरे लंड को अपने मुंह तक ले लिया और उसे वह चूसने लगी।

जब उसके गले के अंदर मेरा लंड जाता तो मैं पूरी तरीके से उत्तेजित हो जाता मैंने उसे बिस्तर पर लेटा दिया और उसके दोनों पैरों को चौड़ा करते हुए मैंने उसकी योनि के अंदर बाहर लंड को करना शुरू कर दिया। वह मेरा पूरा साथ देती और कहती साहब और तेज करो ना वह मुझे सेक्स के लिए और भी ज्यादा उत्तेजित करने लगी थी उसने मेरे बदन पर अपने नाखून के निशान भी लगा दिए लेकिन मैंने भी उसकी चूत का भोसड़ा बना दिया था। उसके स्तनों को मैं जिस प्रकार से दबाता उससे मुझे और भी मजा आता मैं बड़े अच्छे से उसके स्तनों को दबाए जा रहा था मुझे काफी मजा आता बहुत देर तक ऐसा ही चलता रहा लेकिन जब मेरे वीर्य की पिचकारी बाहर की तरफ को निकली तो वह खुश हो गई। उसने मेरी इच्छा पूरी कर दी मैंने उसे पैसे दिए उसके बाद तो वह मेरी दीवानी हो चुकी थी।

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